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“झूठे, तुमने तो कहा था कि तुम्हें फिज़िक्स ज़रा भी नहीं आती!” हैरत से आँखों को थोड़ा चौड़ा करते हुए वो बोली। “तो और तरीका भी क्या था तुमसे पढ़ने का?” मुस्कुराते हुए उसने कुर्सी खींची। “देखा, मेरी सहेलियां सही बोलती थीं कि ये समर हमेशा तुझसे मिलने के बहाने ढूंढता है। मैं ही बुद्धू थी।” गहरे भूरे रंग का फुल फ्रेम वाला चश्मा उतारते हुए उसने कहा। “बनो मत, जान-बूझकर साइकिल धीरे चलाते कई बार देखा है मैंने तुम्हें।” कॉफ़ी आर्डर करते हुए समर बोला। अनुष्का और समर आज दस सालों बाद अचानक एयरपोर्ट पर मिले थे। ज़िंदगी की दौड़ में दोनों इतनी तेज़ी से दौड़ रहे थे कि अब तक अतीत से अपॉइंटमेंट फिक्स ही नहीं हो पाया था। आज जब अचानक एक दूसरे को देखा, तो कुछ देर तक तो दोनों चुपचाप खड़े रहे। शायद लफ्ज़ ढूंढ रहे थे, फासले कम करने के लिए। “स्कूल ख़त्म हुए इतने साल हो गए समर, तुम्हें मेरी याद भी नहीं आई?” “शहर की सबसे मशहूर डॉक्टर हो तुम। मुझे लगा पहचानोगी भी नहीं। वैसे याद तो तुम भी कर सकती थी ना?” कॉफ़ी का पहला सिप लेते हुए वो बोला। “तुम्हारा कुछ पता ही नहीं था।” “अच्छा, सारा शहर जानता है मुझे। तुमने कभी नहीं सुना मेरे बारे में?” “तुम तो जानते ही हो, मुझे ये लिटरेचर वगैरह में ज़रा भी इंट्रेस्ट नहीं। कैसे जानती मैं तुम्हें? अच्छा वीकेंड पर मिलोगे?” “अगर यहाँ रहा तो कोशिश करूँगा।” “घमंडी! तुम आज भी वैसे ही हो।” चिढ़ते हुए अनुष्का ने कहा। “तुमसे ही तो सीखा है अनु।” कुछ याद करते हुए समर बोला। चलो, अच्छा अगर मिल सको तो फ़ोन करना। हॉस्पिटल जाने का टाइम हो रहा है।” “ये आज भी वैसी ही है, अपनी दुनिया में खोयी,” सोचते हुए समर मुस्कुराया। अगली मुलाकात में औपचारिकता कुछ कम हो गयी थी और दोनों को अच्छा लगा था अपने अतीत से कुछ लम्हें चुराना। बीते दस साल में कैसे-कैसे उनके रास्ते अलग हुए थे, उसकी पूरी तहकीकात, सारे शिकवे, सारी शिकायतें करने के बाद दोनों जैसे दोबारा स्कूल के वो बच्चे बन गए थे। डॉक्टर अनुष्का वापिस पिंक साइकिल वाली अनु बन गयी थी और अपने सबसे अच्छे दोस्त समर से लड़ रही थी, बिना बताये उसकी ज़िंदगी से गायब हो जाने के लिए। “एक फ़ोन तो कर देते समर, क्या ज़रूरत थी ऐसे अचानक गायब होने की?” “तुम्हें फर्क भी कहाँ पड़ता था अनु, मेरे होने ना होने का।” “तुम इडियट हो। जाने से पहले एक बार कुछ कहा, कुछ पूछा तो होता।” “तुम अपनी दुनिया में खोयी थी, मौका ही नहीं मिला।” “इसलिए तुम चुपचाप चले गए। बिना मेरे बारे में सोचे।” “हाँ, मुझे इंकार से डर था।” कुछ पलों की ख़ामोशी और दोनों उठकर अपनी-अपनी गाड़ियों की तरफ बढ़ गये। यादें हमेशा खुशनुमा हों, ये ज़रूरी नहीं होता ना। रिश्तों पर जमी बर्फ, जो उस रोज़ थोड़ा पिघली थी, अब फिर से सख्त हो गई थी । समर ने सोचा था अनुष्का उससे माफ़ी माँगेगी, बरसों पहले उसकी मोहब्बत को अनदेखा करने के लिये। अनुष्का ने सोचा था कि समर उससे माफी माँगेगा, उसे अकेला छोड़कर जाने के लिये। मगर दोनों ने कुछ नहीं कहा, दोनों एक जैसे जो थे। आज उस शहर में समर का आखिरी दिन था। वो शायद हमेशा के लिये विदेश जा रहा था। इस शहर, इस देश से बहुत दूर, एक नयी दुनिया में। उसने जाने से पहले अनुष्का से एक बार बात करने की कोशिश की। उसे याद था कि अनुष्का ने कहा था, “जाने से पहले एक बार बताया तो होता समर।” मगर उसका फोन सुबह से बंद जा रहा था। “ये कभी नहीं बदलेगी,” चिढ़ कर समर बड़बड़ा रहा था। वो कोशिश कर रहा था मन कहीं और भटकाने की, मगर हर बार उसे अनुष्का से जुड़ी कोई बात याद आ रही थी। हार कर उसने अस्पताल फोन मिलाया। “डॉक्टर अनुष्का से बात हो सकती है?” “जी, आप कौन?” “मैं उनका दोस्त हूँ, समर।” “मैडम तो दस दिनों से नहीं आयीं। उनका एक्सीडेंट हुआ है। वो रेस्ट पर हैं।” अस्पताल से अनुष्का का एड्रेस लेकर समर पागलों की तरह भागा। घर पहुँचा तो मेड ने बताया कि अनुष्का सो रही थी। समर उसके कमरे में गया और चौंक गया। उस कमरे की दीवारों पर हर जगह समर था। उसकी तस्वीरें थीं- लेक्चर देते, बुक फेयर्स में बोलते, ईनाम लेते। इन दस सालों का पूरा हिसाब था उन दीवारों पर। शायद वो उससे एक पल को भी दूर नहीं हुई थी। “बड़ी देर लगा दी लेखक महोदय,” आहट से जागी अनुष्का ने कहा। “अनु तुमने कुछ कहा, कुछ पूछा क्यों नहीं कभी?” “तुम अपनी दुनिया में खोये थे समर, और मुझे भी इंकार से डर था।”